प्रथम विश्व युद्ध 1914 ईस्वी से 1918 ईस्वी तक लड़ा गया | इस युद्ध के अनेक कारण थे जिनमें से कुछ कारणों का वर्णन निम्नलिखित है : —
(1) उग्र राष्ट्रीयता
उग्र राष्ट्रीयता से अभिप्राय एक ऐसी भावना से है जिसके अनुसार मनुष्य अपने राष्ट्र व जाति को सर्वश्रेष्ठ मानने लगता है |
19वीं सदी के अंत तक यूरोप के अनेक देश उग्र राष्ट्रीयता की भावना से ग्रस्त हो चुके थे | वे अन्य देशों पर अधिकार करने लगे थे | यह भावना विश्व शांति के लिए हानिकारक सिद्ध हुई |
जर्मनी ने फ्रांस के अलसेस व लोरेन पर अधिकार कर लिया | इससे फ्रांस की जनता के मन में जर्मनी के प्रति नफरत की भावना भर गई | ऑस्ट्रिया ने बोस्निया पर अधिकार कर लिया जिससे सर्बिया की राष्ट्रीय भावना को ठेस पहुंची | इस प्रकार उग्र राष्ट्रवाद के कारण यूरोपीय देशों में परस्पर नफरत की भावना फैलने लगी |
(2) साम्राज्यवादी होड़
19वीं सदी के अंत तक कई यूरोपीय देशों में साम्राज्यवादी होड़ लग चुकी थी | यूरोपीय देशों ने एशिया और अफ्रीका के अनेक देशों पर अपना अधिकार कर लिया था | उपनिवेश स्थापित करने की इस होड़ में ब्रिटेन और फ्रांस सबसे आगे थे | जर्मनी इस दौड़ में काफी पीछे था | बाद में उसने अपने उपनिवेश स्थापित करने की कोशिश की परंतु हर जगह उसे फ्रांस और ब्रिटेन के विरोध का सामना करना पड़ा इससे उनके बीच में तकरार बढ़ने लगी | बाद में अन्य यूरोपीय शक्तियां भी इस होड़ में शामिल हो गई | इस प्रकार यूरोपीय देशों में परस्पर नफरत की भावना बढ़ने लगी |
(3) गुप्त सैनिक संधियां
अनेक इतिहासकार गुप्त सैनिक संधियों को प्रथम विश्व युद्ध का प्रमुख कारण मानते हैं | 1882 ईस्वी में ट्रिपल एलाइंस का निर्माण हुआ जिसमें जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और इटली शामिल थे | 1907 ईस्वी में ट्रिपल एंतांत का गठन हुआ जिसमें रूस, फ्रांस और ब्रिटेन शामिल थे | इन संधियों से यूरोप परस्पर विरोधी गुटों में बंट गया |
(4) सैन्यवाद का प्रसार
उग्र राष्ट्रवादी भावना के कारण सैन्यवाद का प्रसार होने लगा | साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा के कारण सभी देशों में भय और घृणा का वातावरण बनने लगा | 1874 ईस्वी में जर्मनी के पास 4 लाख सैनिक थे | 1884 में यह संख्या बढ़कर 8 लाख से अधिक हो गई | इसी प्रकार फ्रांस की सेना की संख्या 6 लाख से अधिक थी और रूस के पास भी 15 लाख से अधिक सैनिक थे | जर्मनी नौसेना भी विकसित करने लगा था | इस प्रकार सभी देशों में भय और शंका का वातावरण बन चुका था जिसके चलते वे अधिक से अधिक सैन्य शक्ति एकत्रित करना चाहते थे |
(5) अंतरराष्ट्रीय शांति संगठन का अभाव
यूरोप में इस समय तक कोई ऐसी अंतरराष्ट्रीय संस्था नहीं थी जो विभिन्न राष्ट्रों के आपसी झगड़ों का निपटारा शांतिपूर्ण ढंग से हल कर सके और गुप्त संधियों को रोक सके | सभी राष्ट्र अपनी सैन्यशक्ति बढ़ाते जा रहे थे | कोई ऐसी संस्था नहीं थी जो उन पर नियंत्रण स्थापित कर सके | ऐसी अवस्था में युद्ध होना अवश्यंभावी था |
(6) कैसर विलियम द्वितीय की महत्वाकांक्षा
जर्मनी का सम्राट कैसर विलियम द्वितीय अत्यंत क्रोधी और महत्वाकांक्षी था | वह संपूर्ण विश्व में अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता था | अंतरराष्ट्रीय मामलों में वह किसी से समझौता करने के पक्ष में नहीं था | ब्रिटेन की मित्रता के प्रस्ताव को भी उसने ठुकरा दिया | वह निरंतर अपनी सैन्य-शक्ति में वृद्धि करता रहा | इस प्रकार कैसर विलियम द्वितीय की साम्राज्यवादी सोच ने संपूर्ण विश्व को युद्ध के कगार पर ला दिया |
(7) प्रेस की भूमिका
प्रथम विश्वयुद्ध की भूमिका तैयार करने में प्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका रही | उस दौर में समाचार पत्रों में बहुत सी घटनाओं को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया कि लोगों में उत्तेजना बढ़ गई | अंतरराष्ट्रीय मामलों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाना कठिन हो गया | इंग्लैंड के अखबारों में जर्मनी के सम्राट कैसर विलियम द्वितीय की घोर आलोचना की जाती थी | इससे इंग्लैंड की जनता में जर्मनी के प्रति नफरत बढ़ने लगी | दूसरी ओर जर्मनी के लोग इंग्लैंड से नफरत करने लगे | ऑस्ट्रिया और जर्मनी में रूस के प्रति नफरत बढ़ने का कारण भी यही था कि रूस के समाचार पत्रों में अनेक उत्तेजक लेख छपे थे | फ्रांसिस फर्डिनेंड की हत्या के पश्चात ऑस्ट्रिया व सर्बिया के समाचार पत्रों ने एक दूसरे के खिलाफ खूब जहर उगला | इस प्रकार समाचार पत्रों ने युद्ध का वातावरण तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई |
(8) बोस्निया संकट
सन 1878 में बर्लिन कांग्रेस में बोस्निया और हर्जेगोविना का प्रशासकीय नियंत्रण ऑस्ट्रिया को सौंप दिया गया परंतु वह इन प्रदेशों पर पूरा नियंत्रण नहीं कर सकता था | सर्बिया इससे नाराज हुआ क्योंकि यह स्लाव बाहुल्य क्षेत्र था | सर्बिया के लोग स्लाव क्षेत्रों को मिलाकर स्लाव राष्ट्र बनाना चाहते थे | इसके लिए वे सर्व स्लाव आंदोलन चला रहे थे | रूस भी सर्बिया के समर्थन में था | बोस्निया और हर्जेगोविना में विरोध बढ़ता जा रहा था परंतु 1908 में ऑस्ट्रिया ने इन क्षेत्रों को अपने अधिकार में ले लिया | यह बर्लिन की संधि का स्पष्ट उल्लंघन था | इससे रूस और ऑस्ट्रिया के बीच युद्ध होना अवश्यंभावी हो गया | सर्बिया में सर्व स्लाव आंदोलन उग्र होने लगा | हर तरफ ‘ऑस्ट्रिया का नाश हो’ नारे लगने लगे | युद्ध का वातावरण तैयार हो गया | अब बस चिंगारी फूटने की देरी थी |
(9) प्रथम विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण
ऐसे अनेक कारण थे जिन्होंने विश्वयुद्ध को अवश्यंभावी बना दिया था | विभिन्न देशों में परस्पर नफरत का भाव था | तनाव लगातार बढ़ता जा रहा था | जरूरत सिर्फ एक चिंगारी की थी | 28 जून, 1814 को ऑस्ट्रिया के राजकुमार आर्क ड्यूक फ्रांसिस फर्डिनेंड की हत्या कर दी गई | यह हत्या बोस्निया के नगर सेरेजेवा में हुई थी | इस घटना ने चिंगारी का काम किया जिससे युद्ध की आग भड़क गई ऑस्ट्रिया में क्रोध की लहर दौड़ पड़ी | ऑस्ट्रिया ने इस हत्या का आरोप सर्बिया पर लगाया | 28 जुलाई, 1914 को ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी | रूस ने सर्बिया का समर्थन किया | इस प्रकार प्रथम विश्व युद्ध आरंभ हो गया |
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि प्रथम विश्वयुद्ध के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे परन्तु फिर भी यूरोपीय देशों की साम्राज्यवादी भूख को इसका प्रमुख कारण माना जा सकता है | इस भूख ने ही अंध राष्ट्रवाद और सैन्यवाद को बढ़ावा दिया जो बाद में एक ऐसे युद्ध का कारण बने जिसके भयंकर परिणाम केवल यूरोप को ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को झेलने पड़े |
Other Related Posts
सामंतवाद के पतन के कारण ( Samantvad Ke Patan Ke Karan )
पुनर्जागरण : अर्थ, परिभाषा एवं उदय के कारण ( Punarjagran : Arth, Paribhasha Avam Uday Ke Karan )
पूंजीवाद : अर्थ, परिभाषा विशेषताएं / लक्षण, उदय के कारण व प्रभाव
वाणिज्यवाद : अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, विशेषताएँ, काल व उदय के कारण
औद्योगिक क्रांति : अर्थ, कारण, विकास व प्रभाव ( Audyogik Kranti : Arth, Karan, Vikas V Prabhav )
फ्रांस की क्रांति के कारण व प्रभाव / परिणाम ( France Ki Kranti Ke Karan V Prabhav / Parinaam )
जर्मनी का एकीकरण ( Unification of Germany )
इटली का एकीकरण ( Unification Of Italy )
द्वितीय विश्व युद्ध के कारण व प्रभाव